लेखनी कविता -12-Jul-2022
छोड गये आँगन की तुलसी
छोड़ गये दीपक बाती
छोड़ गये वो भजन सुरीले
छोड़ गये संगी साथी
छोड़ गये सब बाग बगीचे
छोड़ गये खिरमन प्यासी
छोड़ गये सब बन्धु बान्धवर
छोड़ गये नातिन नाती
छोड़ गये जीवन के पथ पर
तब कहते थे मैं हूँ ना
छोड़ गयेतुलसी की माला
छोड़ गये जलता धूना
छोड़ गये जिस उम्र में
तुम अब उससे मैं हूँ दूना
पर बाबूजी बिना तुम्हारे
अब मैं हूँ सूना सूना हूँ
निज कष्टों को सेतु बनाकर
जीवन पथ को पार किया है
स्वयं स्वार्थ को दरकिनार कर
सब को इतना प्यार दिया है
यादों की बाराते लेकर
यूँ बैठक में बैठे हो
चंदा जैसी शीतलता ले
पूँछ रहे हो कैसे हो
दूर क्षितिज के सुर्ख व्योम
में मूरत देखा करता हूँ
मन मंडल के दर्पण में
मैं सूरत देखा करता हूँ
नित्य नए मेलों में जाकर
सुबह शाम मैं हूँ घूमा
पर बाबूजी बिना तुम्हारे
अब मैं हूँ सूना सूना
उदयबीर सिंह गौर
खम्हौरा
बांदा
उत्तर प्रदेश
Chudhary
14-Jul-2022 10:20 PM
Nice
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Mukesh Duhan
13-Jul-2022 11:38 AM
Nice ji sir
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Seema Priyadarshini sahay
13-Jul-2022 10:09 AM
बेहतरीन रचना
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